Monday, January 23, 2023

'खत बेनाम-से..'


'प्रिये'..

इस नाम से संबोधित कर सकतीं हैं न साँसें अब भी?? रिश्तों की प्रगाढ़ता अपना स्नेह खोजतीं हैं, तुम्हारी आहट में.. तुम प्रेम के परिचायक हो!

मेरे होने के संदर्भ में तुम्हारी याद या तुम्हारे स्पर्श में सम्मिलित मेरा अस्तित्व!

तुम आहट हो, पोर की स्याही वाली..

तुम्हारा ही..

Sunday, January 12, 2014




आज 'जां' नहीं लिख सकूँगी.. यूँ हर पल तुम्हें ही चाहा है..चाहूँगी भी..पर आज नहीं लिख सकूँगी..!! दिल की छोटी-छोटी तरंगें जैसे बेचैन हैं..तूफां से लिपट भी मैं टूटी नहीं, जाने क्या कशिश थी मैं बिखरी नहीं..

तुमने क्यूँ थाम रखा है..अब जाने दो..मेरे खुरदुरे हाथ तुम्हारे मुलायम हाथों से.. फिसलने दो मेरा मन अपने मन के दर्पण से..!!

Saturday, May 18, 2013

प्रिय मित्र.. इन दिनों चिट्ठी का प्रचलन लुप्त हो चला है..परन्तु तुम्हें तो पत्र लिखना ही था.. तुमसे गाँव की सौंधी सुगंध अब तक सुरक्षित है, और खेत-खलियान की मिटटी.. तुमसे ही रंगत बची है अब तलक आत्मीयता से लिपे चूल्हे-चौके की..!!! लौट आओ कि बुलाती हैं पगडण्डीयां..थरथराती हैं झूलों की रस्सियाँ..सकपकाती हैं बैलों की घंटियाँ.. सब तुम्हारी स्नेहहिल प्रतिमूर्ति चित्त में बसा देखते हैं एक ऐसा स्वप्न जो जीवंत होगा तो समूचे प्रांत में भर देगा असीम सुख-समृद्धि और शान्ति..!! तुम्हारी राह देखता हुआ.. एक भूला-बिसरा मीत..

Thursday, January 5, 2012


परम प्रिय मित्र,

आशा है कुशलपूर्वक होंगे..परमपिता सदबुद्धि प्रदान करें !!

आज संयोग से ह्रदय की भूमि पर कुछ पाषाणों को हटाने का सुअवसर मिला..गुरुजनों की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ व संतुष्टि की धारा बही..!!

प्रसन्नचित्त हूँ..बह चलीं हैं कुछ पंक्तियाँ..

...

"तुम जो देख भर लेते हो.
साँसें मचल जाती हैं..

सुना था..
कई मर्तबा..
किस्सा-ए-आम..
इनायत के दो पल भी..
नसीब नहीं करते.
संग कूचे के..!!"

...



पत्र देना..

सस्नेह,

तुम्हारा मित्र !!