इस नाम से संबोधित कर सकतीं हैं न साँसें अब भी?? रिश्तों की प्रगाढ़ता अपना स्नेह खोजतीं हैं, तुम्हारी आहट में.. तुम प्रेम के परिचायक हो!
मेरे होने के संदर्भ में तुम्हारी याद या तुम्हारे स्पर्श में सम्मिलित मेरा अस्तित्व!
तुम आहट हो, पोर की स्याही वाली..
तुम्हारा ही..