Thursday, January 5, 2012


परम प्रिय मित्र,

आशा है कुशलपूर्वक होंगे..परमपिता सदबुद्धि प्रदान करें !!

आज संयोग से ह्रदय की भूमि पर कुछ पाषाणों को हटाने का सुअवसर मिला..गुरुजनों की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ व संतुष्टि की धारा बही..!!

प्रसन्नचित्त हूँ..बह चलीं हैं कुछ पंक्तियाँ..

...

"तुम जो देख भर लेते हो.
साँसें मचल जाती हैं..

सुना था..
कई मर्तबा..
किस्सा-ए-आम..
इनायत के दो पल भी..
नसीब नहीं करते.
संग कूचे के..!!"

...



पत्र देना..

सस्नेह,

तुम्हारा मित्र !!

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